भटकुल नानचुन गांव रथे, फेर ऊंहा लड़ई-झगरा अऊ दंगा असन बुता होवते राहय। ऊंहा के गंउटिया इही झगरा के पीरा ल नई सही सकीस अऊ परलोक सिधार गे, ओखर माटी पानी में पुरा अतराब के मनखे सकलइस, ओमा एक झन साधु घलो आय राहय। वोहा गंउटिया के ननपन के संगवारी रथे, वोहा गंउटिया के जिनगी के हर-हर कट-कट ल जानत रथे, गंउटिया हा एक घंव अपन मया बिहाव बर जात बदले रथे, फेर ये बात ल ज्यादा मनखे नई जानय। गंउटिया के परवार वाला मन अपन छाती पीट के रोवत रथे, ओतकी बेर साधु हांस के कथे नाव बदले ले न गाडी बदले न ठऊर, जम्मों झन रीस म ओखर मुहु ल देखथे फेर साधु ल कुछु नई केहे सके काबर के साधु बड़ गियानी रथे, अऊ ओखर सोर सबो कोती बगरे रथे। अब माटी पानी ल करके जम्मों मनखे लहुट जथे। एक दिन गांव के चौरा म बइठ के मनखे मन साधु के गोठ करत रथे, त साधु के कहे गोठ ल सुरता करके एक झन मनखे कथे साधु के गोठ म रहस्य रथे, चलो न जी जाके पुछबो के वोहा अइसन काबर किहिस होही। त जम्मों मनखे तियार हो जथे अऊ साधु करा जाके पुछथे ‘नाव बदले ले न गाड़ी बदले न ठऊर’ के का मतलब आय? साधु जम्मों झन ल बइठे बर कथे अऊ पानी पियाथे, ताहन पुछथे तुमन कोन हरो अऊ का बुता करथो। त सब कथे हमन भटकुल गांव ले आय हन, अऊ हमन सहर के लोहा कारखाना म कमाथन। त साधु पुछथे कमाय बर कामे जाथो? त ओमन कथे रहीम (ट्रेवल्स) मोटर म चइघ के जाथन। साधु कथे ले बने हे अब तुमन तीन महीना बिते के बाद म आहू ताहन येखर मतलब ल बताहूं। जम्मों झन हव कही के लहुट जथे।
साधु ल जम्मों झन माने, बड़ पईसा वाला मन घलो ओखर चेला राहय, अऊ ओखर कहे ल कभू नई काटय। त साधु अपन चेला ल बुला के कथे तेहा रहीम ट्रेवल्स के मोटर ल बीसा ले अऊ मोटर म राम ट्रेवल्स लिखवा के चला। ओखर चेला वइसने करथे। फेर एक महीना के बाद म दूसर चेला ल तेहा उही मोटर ल बीसा के गोविंद ट्रेवल्स लिखवा के चला कथे, त वोहा गुरु के कहना मान के मोटर तो बीसा डरथे फेर बने नई चला सके त दस-बारह दिन म डेविड करा बेच देथे त वोहा मोटर ल बीसा के ईशु ट्रेवल्स लिखवा के चलाथे।
अब तीन महीना के गे ले, गांव वाला मन साधु करा आथे, त साधु ओमन ल बइठार के हालचाल पुछथे, अऊ कथे अब तुमन कमाय बर कते मोटर म जाथो त गांव वाला मन बताथे ईशु ट्रेवल्स में जाथन महाराज! त साधु कथे अऊ ओखर ले पहिली कामे जावत रेहेव? त गांव वाला मन सब नाव ल ओरियाथे। त साधु कथे आने-आने मोटर म जाथो त आने-आने ठऊर म जावत होहू! अऊ तुंहर गांव म भारी नवा-नवा मोटर चलथे जी! त गांव वाला मन कथे नही महाराज गाडी उहीच आय अऊ उहीच ठऊर म जाथन फेर नाव भर बदलत रथे। त साधू हांस के कथे इही गोठ ल तो महु कहे रेहेव के नाव बदले ले न गाड़ी बदले न ठऊर, त एक झन कथे, बने फरिया के बता न महाराज.!
त साधु कथे के ये हमर तन हा गाड़ी आय जेला हमन हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई अऊ कोन जनी का-का नाव ले चिन्थन। जइसे वो मोटर के नाव बदले ले ओखर काया हा नई बदलिस वइसने हमर जात-धरम के बदले ले काया ह नई बदले। तभो ले हमन ये नाव मन बर अपने-अपन कटथन मरथन, कतको झन हा ये धरम ले वो धरम नाचत रथे, कोनहो हा भेदभाव म अपन अंतस ल मइला डरे रथे, फेर भगवान के बनाय तन हा उहीच रही। अऊ जम्मों झन के आखिरी ठऊर का हरे? जम्मों मनखे ल आखिर में मरघट्टठीच तो जाना हे! त जात-धरम के नाव ले लड़ई-झगरा करे के का मतलब हे। ये तन हा मोटर बरोबर आय, थोकन बेरा बर येमा चघे ल मिल जथे त हमन बड़ इतराथन, ताहन फेर जुच्छा के जुच्छा। तिही पाय के तो कथो नाव बदले ले न गाड़ी बदले न ठऊर, अब गांव वाला मन के आंखी उघर गे अऊ जम्मों झन मिलजुर के रेहे लागिस।
ललित साहू “जख्मी” छुरा
जिला – गरियाबंद (छ.ग.)
9993841525
सुग्घर ललित भाई ।
बढिया कहानी लिखे हस ललित ! सुघ्घर सीख मिलिस हे ।